Saturday 4 August 2012


जब कभी ओट से इठलाती बेलब्ज़ तेरी याद आती है ,
जब कभी पत्तो की फरफराहट साज बनाती है,
जब कभी पानी की बुँदे ताल सजाती है, 
जब इस सुने से मन में पंखो की  फरफराहट भरी आवाज घर कर जाती है,
जब इस मन की पटल पर इक कौंधती पर खामोश सन्नसन्नाहट सी छाती है, 
तब बस उनकी याद आती है, याद आती है, 
वह अपना घर, वह आजादी,
खुली हवा में यार्रों संग मस्ती,
तालाब के मुहाने पर जाना, कंकर फेक यादों को संजोना,
कागज की नाव की कस्ती,
बारिस का मौसम और बूंदों का सुर,
दोस्तों संग नंगे पाँव की दौड़,
यह बेलब्ज़ तेरी याद दिलाती  है,
सुने मन पटल में पंखो की फरफराहट भरी आवाज घर कर जाती है,
तब  इस मन की पटल पर फिर खामोश सन्नसन्नाहट सी छा जाती है,
क्यों वह पल याद आती है, याद आती है. 
लेखन------ प्रिंस 

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